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सोच कर भी क्या जाना जान कर भी क्या पाया / अब्दुल अहद 'साज़'
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09:51, 24 मार्च 2020
एहतिमाम दस्तक का अपनी वज़्अ थी वर्ना
हम ने
हमने
दर रसाई का बार-हा खुला पाया
फ़लसफ़ों के धागों से खींचकर सिरा दिल का
अनिल जनविजय
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