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कॉलेज के दिनों में इन्हें कविता तथा अभिनय का शौक़ लगा। जिसके कारण विभिन्न नाटकों तथा रामलीला में अभिनय करने लगे, धीरे-धीरे गढ़वाली फिल्मों में हाथ आज़माया तथा इतनी कम उम्र में ही तक़रीबन 4 गढ़वाली फिल्मों तथा अनेकों एल्बमों में अभिनय किया। "सूबेदार साब का नौना" इनकी प्रसिद्ध फिल्म है। रंगमंच के साथ लेखन भी अनवरत चलता रहा, हिन्दी तथा गढ़वाली दोनों भाषाओं के कवि सम्मेलनों में कॉलेज के दिनों से ही शिरकत करने लगे थे।
इन्होंने महज़ 20 साल की उम्र में स्वयं को गढ़वाली के प्रतिष्ठित कवि के रूप में स्थापित कर लिया। तद्पश्चात हिन्दी तथा उर्दू की विभिन्न विधाओं पर हाथ आज़माना शुरू किया और बहुत ही कम समय में ग़ज़ल, नज़्म, कविता, दोहे, कुंडलिया तथा घनाक्षरी आदि विधाओं में लिखने लगे। इनकी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। इनकी रचनाएं कविताकोश आदि में भी संग्रहित अक्षरम, किसलय इनके दो साझा कविता संग्रह हैं। इनको विभिन्न साहित्यिक संस्थानों ने सम्मानित भी किया है, जिनमें पर्पल पेन साहित्यिक समूह द्वारा प्रदत्त 'साहित्य केतु सम्मान' प्रमुख है। इनको विभिन्न वाद्ययंत्र जैसे बांसुरी,हारमोनियम, ढोलक, तबला तथा पियानो का भी विशेष ज्ञान है। वर्तमान में यह उत्तराखंड लोक निर्माण विभाग में मानचित्रकार (सिविल इजी०) के पद पर कार्यरत हैं।
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