Changes

माहिये-२ / वसुधा कनुप्रिया

1,197 bytes added, 15:08, 8 अप्रैल 2020
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वसुधा कनुप्रिया |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वसुधा कनुप्रिया
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
[[Category:माहिया]]
<poem>
दुश्मन तुम आओ तो
नाम मिटा देंगें
तुम पैर बढ़ाओ तो


नापाक इरादे रख
देखो ना हमको
मर जाओगे तक तक


कुल ऐसे तार रहे
बेटे की ख़ातिर
बेटी को मार रहे


बदरा तो छाये हैं
बरसें तो जानें
मन को भरमाये हैं


पानी ही पानी है
फसलें डूब गई
रोती ज़िंदगानी है


चोरी तो चोर करे
भाग विदेस गये
जनता अब शोर करे


पढ़ लिख के वो जाते
अमरीका लन्दन
माँ बाबुल ग़म खाते


आश्रम में छोड गये
मात पिता से वो
मुख ऐसे मोड़ गये
</poem>
Mover, Reupload, Uploader
3,998
edits