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तपन / ओम व्यास
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13:40, 10 अप्रैल 2020
प्यार के दरख्त की छाँव में,
जब कभी सुस्ताना चाहता हूँ,
झड़ जाया करते
हैं–पत्ते
हैं पत्ते
मिलती है
फिर वही जुड़ाई की तपन।
</poem>
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