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[[Category:बाल-कविताएँ]]
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'''3-हवा का झोंका'''
पर्वत-पर्वत
खेतों-खेतों
दिनभर घूमा
अल्हड़ प्यारा
रहा दौड़ता
नन्हा एक हवा का झोंका ।
पकड़ डालियाँ
झूला जीभर
बैठ गया-
पत्तों में छुपकर
किसी पेड़ ने
हाथ पकड़ कब उसको टोका ।
आँख बचाकर
झरने में भी
खूब नहाता
धूल उड़ाता
खलिहानो ने,
गाँव-गली ने कभी न टोका ।
 
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'''4-धूप'''
 
बहुत दूर से आई धूप
लेकरके गरमाई धूप ।
 
प्यासी धरती
प्यासा अम्बर
छिपे सभी हैं
तुझसे डरकर
तू न किसी को भाई धूप ।
 
बहा पसीना
मुश्किल जीना
चैन सभी का
तूने छीना
लू तेरी अँगड़ाई धूप ।
 
सूरज को जब
गुस्सा आता
चलते-चलते
वह थक जाता
ठण्डा शरबत लाई धूप ।
 
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