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पिताजी काहे को (बिदाई गीत) / खड़ी बोली
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{{KKLokRachna
|रचनाकार=अज्ञात
}}
{{KKLokGeetBhaashaSoochi
|भाषा=खड़ी बोली
}}
'''बिदाई गीत -2<br>'''
पिताजी काहे को ब्याही परदेस…<br>
हम तो पिताजी थारे कमरे ईंटें, <br>
जिधर चिणों चिण जाएँ, <br>
काहे को ब्याही परदेस…<br>
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