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मजबूरी / गुलरेज़ शहज़ाद

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आपन गोड़ में
अपने बान्हल
करिया,मोट आ भारी जंजीर के
घिसियावत घिसियावत
दम हार गइल बा

रचनाकार जब
राजनीतिक हो जाला
तब रचना संसार
ओकरा खातिर
"वर्जित परदेस" हो जाला
भोथड़ हो जाला
भावना आ शब्दन के हथियार

गीत आ गजल के राधा
राजनीति के नगरवधु के
अन्हार कोना में
मुँहकुरिये गिरल बिया

परिवर्तने परिवर्तन बा
सिरजन नइखे
घात बा प्रतिघात बा
सिहरन नइखे
ललाट पर चमकत
लहू के टीका बा
चंदन नइखे
लोभ बा दम्भ बा
समर्पण नइखे

दुख के धाह में
समूचा विचार झंउस रहल बा
आपन "आप"
बचावे के जतन में बानी
कोसिस बा कि
मरे नाही आंख के पानी।
</poem>
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