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कबहूँ लिखा सकल ना तहरीर जिन्दगी के / मनोज भावुक
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|रचनाकार=मनोज भावुक
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कबहूँ लिखा सकल ना तहरीर जिन्दगी के
कबहूँ पढ़ा सकल ना तकदीर जिन्दगी के
तहरे बदे रहत बा पागल परान 'भावुक'
तूहीं हिया के थाती, जागीर जिन्दगी के
<
poem
p/oem
>
Sharda suman
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