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07:13, 7 जून 2020 {{KKGlobal}}
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<poem>
अपना चूड़ी खानी
चंचलता के खनक
अपना अंचरा में बन्हले
हाँक लगावत
‘चूड़ी ले लऽ चूड़ी’
आवत रही गाँवे एगो चूड़ीहारिन
सबका स्वीकार
हर घर तइयार
पानी नियन छलछलात
साँवर रंग-रूप
बथुआ के साग खानी
मोलाएम हाथ के दबावत
कलाइयन में
रंग-बिरंगा चूड़ी चढ़ावत
चूड़ीहारिन ।
बतावस घर-घर के हाल
सास-पतोह के झगड़ा
पटी-पट्टीदार के रगड़ा, आ
बड़का घर के, चूड़ी के
पछिला उधार ।
जमाना भइल, अब
गाँव में हाँक ना लगावे चूड़ीहारिन
चूड़ीहारिन के दउरा देख के
नवकी दुलहिनिया आ
लइकी सब के
आँख के चमक हेरा गइल बा
का करबऽ
ई बजार के चमत्कार हऽ !
पुरनका केतना कुछ बेकार हऽ !!
</poem>