मदिरालय वृन्दावन लगते, जग बौराये होली में।
धमाचौकड़ी मचा के' लौटा, गिरगिट संवत्सर बाँचे,
रंग बदलना जिसे न भाये, गाल फुलाये होली में।
त्रिकिट-ध्रिकिट-धुम नाचे 'नीरव' , लोक नचाये होली में।
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आधार छंद-लावणी
विधान-30 मात्रा, 16, 14 पर यति, अंत में वाचिक गा
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