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दीप मेरे / महादेवी वर्मा

90 bytes removed, 12:50, 13 जुलाई 2020
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|रचनाकार=महादेवी वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=दीपगीत / महादेवी वर्मा
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<poem>दीप मेरे जल अकम्पित,<br>धुल अचंचल !<br>सिन्धु का उच्छ्वास घन है,<br>तड़ित् तम का विकल मन है,<br>भीति क्या नभ है व्यथा का<br>आँसुओं से सिक्त अंचल !<br><br>
स्वर-प्रकम्पित कर दिशाएँ,<br>मीड़ सब भू की शिराएँ,<br>गा रहे आँधी-प्रलय<br>तेरे लिए ही आज मंगल।<br><br>
मोह क्या निशि के वरों का,<br>शलभ के झुलसे परों का,<br>साथ अक्षय ज्वाल का<br>तू ले चला अनमोल सम्बल !<br><br>
पथ न भूले, एक पग भी,<br>घर न खोये, लघु विहग भी,<br>स्निग्ध लौ की तूलिका से <br>आँक सब की छाँह उज्ज्वल !<br><br>
हो लिये सब साथ अपने,<br>मृदुल आहटहीन सपने,<br>तू इन्हें पाथेय बिन, चिर<br>प्यास के मरु में न खो, चल !<br><br>
धूम में अब बोलना क्या,<br>क्षार में अब तोलना क्या !<br>प्रात हँस-रोकर गिनेगा,<br>स्वर्ण कितने हो चुके पल !<br>दीप रे तू गल अकम्पित,<br>
चल अचंचल !
</poem>
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