|भावार्थ=मन में उठने वाली समस्त लालसाएँ व इच्छाएँ हमको ठगने वाली वाली होती हैं। कबीर के अनुसार यह अनगिनत इच्छाएँ व लालसाएँ माया का ही रूप है। यही माया हमें अवांछित रास्तों की ओर धकेलती है। इस माया में तीनों प्रकार के गुणों यथा- सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण का वास होता है और वह अपने इन्हीं गुणों से लोगों को अपने जाल में फँसाती है।
भगवान विष्णु के यहाँ यह माया लक्ष्मी होकर विराजती है, भगवान शिव के यहाँ यह पार्वती होकर रहती है। पूजा करने वाले पंडितों के यहाँ यह मूर्ति के रूप में दिखाई देती है, तीर्थ स्थानों पर जाकर अपने पाप धोने वालों के लिए यह माया पानी के रूप में दिखाई देती है। योगी के यहाँ पर इस माया का स्वरूप योगिनी हो जाता है, बड़े से बड़े राजा और महाराजा के राजपाट में यह माया रानी के रूप में रहती है। इस माया की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि कहीं तो यह बहुमूल्य हीरा होकर रहती है और कहीं पर फूटी कौड़ी बनकर बैठ जाती है।भक्तों के यहाँ यह माया भक्तिन के रूप में बैठती है, तुर्कों के यहां यह माया तुर्किनी (तुर्क की स्त्री) होकर रहती है।
कबीर दास जी कहते हैं जो ईश्वर का सबसे सच्चा भक्त है उसको यह माया अपने जाल में नहीं फँसा पाती है इसके उलट यह माया, इच्छा और लालसा ईश्वर के सच्चे बंदे के हाथों बिक जाती है।