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मिलन में भी / कविता भट्ट
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03:48, 18 जुलाई 2020
'''13-पत्थर होती अहल्या'''
मदमस्त इंद्र गौतम भी
वैसा
वैसे
ही सशंकित क्रुद्धकिन्तु, राम हो
गया
गए
तटस्थ द्रष्टासंभवतः ; स्पर्श करना भूल
गया है
गए हैं;
इसीलिए शिलाएँ अब
पुनः अहल्या नहीं बन पाती
टूटती-पिसती हैं
वीरबाला
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