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13:17, 18 जुलाई 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लावण्या शाह
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
रात्रि का अंतिम प्रहर था
भोर आगमन अभी शेष था
थी सुप्त ज्योति आकाश में
अंतिम तारक प्रकाश में !
थे जीव पृथ्वी पे निरापद
निमग्न गहन निद्रा अंक में
नहीं कोई स्वर सृत कहीं
आकाश पे, अवकाश था।
गहन तिमिर आच्छादित
प्रच्छन मौन गुफा में सत्य ,
प्रकृति के सजल नयन में
अनुत्तरित यक्ष प्रश्न सा !
</poem>