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लावण्या शाह

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रात्रि का अंतिम प्रहर था
भोर आगमन अभी शेष था
थी सुप्त ज्योति आकाश में
अंतिम तारक प्रकाश में !
थे जीव पृथ्वी पे निरापद
निमग्न गहन निद्रा अंक में
नहीं कोई स्वर सृत कहीं
आकाश पे, अवकाश था।
गहन तिमिर आच्छादित
प्रच्छन मौन गुफा में सत्य ,
प्रकृति के सजल नयन में
अनुत्तरित यक्ष प्रश्न सा !
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