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10:42, 20 सितम्बर 2008 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सुरेश चन्द्र शौक़
|संग्रह = आँच / सुरेश चन्द्र शौक़
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[[Category:ग़ज़ल]]
कभी इधर से कभी हम उधर से गुज़रे हैं
तिरी तलाश में हर रहगुज़र से गुज़रे हैं
जो दिल पे छोड़ गये नक़्श उम्र भर के लिए
कुछ ऐसे जल्वे भी मेरी नज़र से गुज़रे हैं
जिधर से गुज़रे वो, माहौल गुनगुना उठ्ठा
सिसक पड़ी है फ़ज़ा हम जिधर से गुज़रे हैं
अगर्चे मिलने की दोनों तरफ़ थी चाह मगर
वो बेन्याज़—से, हम बेख़बर से गुज़रे हैं
तुम्हारी याद की राहों से जब भी हम गुज़रे
उदास—उदास —से, आशुफ़्ता—सर स्र गुज़रे हैं
हक़ीक़ते—रहे—उल्फ़त तू उन से पूछ ऐ ‘शौक़’
जो लोग ख़ाक —ब—दामाँ इधर से गुज़रे हैं.
नक़्श=चिह्न;बे—न्याज़=बे—परवाह;आशुफ़्ता—सर= हतबुद्धि,सरफिरा; हक़ीक़ते—रहे—उल्फ़त=प्यार की राह की् वास्तविकता;ख़ाक़—ब—दामाँ=दामन में ख़ाक लिए हुए