{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
|अनुवादक=
|संग्रह=कटती प्रतिमाओं की आवाज / हरिवंशराय बच्चन
}}
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<poem>
उनके पास घर-बार है,
सुखी परिवार है,
घर में सुविधाएँ हैं,
बाहर सत्कार सत्कार है,उन्हें ईश्वर उन्हें ईश्वर की इसलिए दरकार है
कि प्रकट करने को
उसे फूल चढ़ाएँ, डाली दें ।
न रोज़गार है,
ज़रूर, बड़ा परिवार है; भीतर तनाव है,
उन्हें ईश्वर उन्हें ईश्वर की इसलिए दरकार है कि
किसी पर तो अपना विष उगलें,
किसी को तो गाली दें ।
इसी से उनके यहाँ दिमाग़ी कसरत है।
ईश्वर ईश्वर है-नहीं है,
पर बहस है,
नतीज़ा न निकला है,
न निकालने की मंशा है,
कम क्या क्या बतरस है!
</poem>