{{KKRachna
|रचनाकार=प्रभाकर माचवे
|अनुवादक=
|संग्रह=तार सप्तक / प्रभाकर माचवे
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<poem>
निशि मेघाकुल...
अमित असित धूमिल मेघों से भरा हुआ नभ का पड़ाव
शशि की झिलमिल —
छोटी-सी लहरों में डगमग पथहीन नाव
किस मृगनैनी की चपल-चपल —
चितवन की सुधि से परिचालित युव-मनोभाव !
शशि न देख किसी का दिल
रह-रह कस के, स्मर कर प्रिय का दुराव —
छिन में आलोकित हो उठती शत-शत तरंग
मन में आलोड़ित सौ उमंग, सिहरते अंग
उड़-उड़ जाते हैं सुधि-विहंग
कुछ दिशा-रहित, कुछ लक्ष्य-भ्रान्त
कुछ सखा-सहित, कुछ यों असंग —
सब ही अशान्त;
निशि मेघाकुल...<br>:अमित असित धूमिल मेघों से भरा हुआ नभ का पड़ाव<br>शशि की झिलमिल-<br>:छोटी-सी लहरों में डगमग पथहीन नाव<br>किस मृगनैनी की चपल-चपल-<br>:चितवन की सुधि से परिचालित युव-मनोभाव !<br>शशि न देख किसी का दिल<br>:रह-रह कस के, स्मर कर प्रिय का दुराव-<br>छिन में आलोकित हो उठती शत-शत तरंग<br>:मन में आलोड़ित सौ उमंग, सिहरते अंग<br>::उड़-उड़ जाते हैं सुधि-विहंग<br>::कुछ दिशा-रहित, कुछ लक्ष्य-भ्रान्त<br>::कुछ सखा-सहित, कुछ यों असंग-<br>:::सब ही अशान्त;<br>ज्योत्स्ना का छिन में कुम्हलाता<br>: लहरिल सम्मोहक मदिर मान<br>जोगी हो मोहातुर गाता<br>: मन में तुषार-मय विदा-गान;<br>प्रत्यक्ष भाव जब सपनों की संचित रुझान<br>: जब बाँध रखे वक्ष से वक्ष<br>:: बाँहो में भर कर विकल बाँह<br>: जाना था किसने नेह राह का<br>:: यह विषाक्त भवितव्य, आह !<br>बँधना प्राणों से मुक मुक्त प्राण...<br>है दक्ष-यज्ञ का संविधान<br>उर की ऊमा का लक्ष-लक्ष अंशों में पाना मरण-दान !<br>अब डोंगी भी हिल-डोल उठी, पाकर गंगा का दूर तीर<br>मनुआ अधीर, नयन के नीर से बोझिल गहरी बिसुध पीर<br>छितरा-छितरा-सा व्योमघाट पर छायाभा का अजब साथ-<br>— आखिर उर में भी डोल उठी, कुछ मावस, कुछ रुपहली रात !<br>:: छू चली पुरातन नेह-बात<br>:: रोमल हो उठे गात-गात।<br>टिम-टिम तारा ऊपर सभीत<br>खेया का कम्पित कंठकण्ठ-गीत<br>आ भर लूँ हिय में तुझे मीत...<br>आ पास और उत्कटता से...<br>: उत्ताल लहर की मर्ज़ी पर<br>: खो दें जीवन पल-कल्प प्रहर;<br>: एकान्त सत्य बहते रहना-<br>— : निज बिधा किसी से क्या कहना ?<br>: सुधि-सम्बल ले चिर-एकाकी<br>:: बस सफ़र-सफ़र;<br> आ पास और तन्मयता से-<br>: अब इन लहरों की मर्ज़ी पर,<br>: मिल कर जीवन में जीवन-स्वर,<br>: हो जायें जाएँ अमर, निर्भर, अन्तर<br>: उत्ताल परंगों तरंगों की गति पर-<br>— क्या पता कहाँ आना-जाना क्या कूलों की परवाह, पिया !<br>इस क्षण दो ओठों में गाना दो ओठों में हो चाह, पिया !<br>वह हिलराता, मदमाता हो, मौजें लेता दरियाव, पिया !<br>मेघों में मुँह ढाँके मयंक, सुधि मन में गिनती घाव, पिया !<br><br/poem>