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ढह गया दिन / अंकित काव्यांश
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18:00, 2 अगस्त 2020
चांदनी का महल
हिलता दीखता है
चाँद रोता इस
कदर
क़दर
बुनियाद में।
कल मिलेंगे आज खोकर कह गया दिन।
Abhishek Amber
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