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उदयलहरी श्लोक ३१ - ४० / ज्ञानदिल दास
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05:37, 4 अगस्त 2020
सेवा गर्ण दिँदैन सधैँ गाजेमाजे॥३९||
इष्ट मित्र दाजु भाई
कुल्कुटुम्न
कुल्कुटुम्ब
जती||
ई सब देष साउनको राती||
पुत्र परिवार इष्ट नाही मेरा॥
ईसब देष पापको घेरा ||४०||
</poem>
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