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वायु के प्रति / सुमित्रानंदन पंत
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17:31, 27 अगस्त 2006
अधर मर्मरयुत, पुलकित अंग<br>
चूमती चलपद चपल तरंग,<br>
चटकती
चटकतीं
कलियाँ पा भ्रू-भंग<br>
थिरकते तृण; तरु-पात!<br><br>
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घनश्याम चन्द्र गुप्त