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अमर स्पर्श / सुमित्रानंदन पंत
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10:13, 3 अगस्त 2006
मन में हों विरह मिलन के व्रण,<br>
युग स्थितियों से प्रेरित जीवन<br>
उर रहे प्रीति में चिर तन्मय!
<br>
<br>
जो नित्य अनित्य जगत का क्रम<br>
Lalit Kumar
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