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13:02, 13 अगस्त 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
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<poem>
जाने इस में शौक़ के कितने सफीने ग़र्क़ हैं
है दिले-बेज़ार अपना गोया कुलज़ुम की तरह
कितनी उम्मीदों के कितने ही दफीने ग़र्क़ है
जाने इस में शौक़ के कितने सफीने ग़र्क़ हैं
ज़िन्दगी के सब सलीके सब क़रीने ग़र्क़ हैं
हैं तलातुम-खेज़ियां इसमें जहन्नुम की तरह
जाने इस में शौक़ के कितने सफीने ग़र्क़ हैं
है दिले-बेज़ार अपना गोया कुलज़ुम की तरह।
</poem>