798 bytes added,
13:05, 13 अगस्त 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
}}
{{KKCatTraile}}
<poem>
आदमी है आदमीयत से जुदा
ज़िन्दगी का ये भी इक अंदाज़ है
कितनी महँगी हो गई जिन्से-वफ़ा
आदमी है आदमीयत से जुदा
कारोबारे-ज़ीस्त गुड़ गोबर हुआ
ज़िन्दगी को फिर भी इस पर नाज़ है
आदमी है आदमीयत से जुदा
ज़िन्दगी का ये भी इक अंदाज़ है।
</poem>