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|रचनाकार=रमेश तन्हा
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|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
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<poem>
धूप के दश्त में भी ऐसा मैं तन्हा तो न था
छांव ने छीन लिया है मिरा आया मुझसे

किसी आसेब का पहरा था जो टलता तो न था
धूप के दश्त में भी ऐसा मैं तन्हा तो न था
अपनी पहचान से रिश्ता मिरा टूटा तो न था

अब तलब करता है शीशा मिरा चेहरा मुझ से

धूप के दश्त में भी ऐसा मैं तन्हा तो न था
छांव ने छीन लिया है मिरा आया मुझसे ।

</poem>
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