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07:50, 17 अगस्त 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=हरिमोहन सारस्वत
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<poem>
उगते सूरज को
सभी सलाम करते हैं
मैं डूबते को करता हूं
दुनिया आरम्भ देखती है
खुश होती है
पर अन्ततः
घड़ी भर बाद वही खुशी
फुस्स होती है
और विलाप जन्मता है
आदि का स्वागत करते लोग
अन्त से घबराते हैं
पर मैं अन्त पसन्द करता हूं
क्योंकि उसी अन्त से
एक नया आदि निकलता है
अनादि निकलता है
जो नश्वर नहीं है
इसीलिए मैं डूबते सूरज को
सलाम करता हूं
जो सच में कभी
डूबता ही नहीं है
</poem>
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