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औघड़ पर्वत के उलझे केशों में रस्ते ढूँढ लिए/ जहीर कुरैशी
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16:26, 23 सितम्बर 2008
| रचनाकार=जहीर कुरैशी
}} <poem>
औघड़ पर्वत के उलझे केशों में रस्ते ढूँढ लिए
झरने ने जब ‘चरैवेति’ के ठोस इरादे ढूँढ लिए
एक भरोसा था— जो नदिया को सागर तक ले आया
यही सोचकर, हमने अपने लिए भरोसे ढूँढ लिए .
</poem>
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द्विजेन्द्र द्विज