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{{KKRachna
|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"
|अनुवादक=|संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poem>मैं झरोखा हूँ।
कि जिसकी टेक लेकर
विश्व की हर चीज बाहर झाँकती है।
और की क्या बात ?
कवि तो अपना भी नहीं है।
</poem>
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