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|रचनाकार=दीपसिंह भाटी 'दीप'
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<poem>
सड़क किनारे जीवण सिसके, निरधन टाबर नानकिया।
कूकर जूणी निस दिन काटै, मर मर जीवै माणखिया।
राज सुभीतो कठै रुल़ाणो, ऐ होग्या पटड़ी आदी।
हिवड़े हाथ राख दे हेलो, आ कैड़ी है आजादी।।1।।

बढे रया कुकरमी बोहळा, खोटा चीला खड़कावै।
माग वैती डरपै मेहळी, धक धक हिवड़ो धड़कावै।
जामण बैन रूप नी जाणै, बिगड़ै कर दी बरबादी।
हिवड़े हाथ राख दे हेलो, आ कैड़ी है आजादी ।।2।।

रेल बसां रा साधन रोकै, हुड़दँग कर कर हरसावै।
होडा होडी कर हड़तालां, दुसटपणो हद दरसावै।
राज संपत्ति रेत रळावै, आ अणजाणी आबादी।
हिवड़े हाथ राख दे हेलो, आ कैड़ी है आजादी।।3।।

नारी अंग उघाड़े नाचे, मरजादां ने मटकावै।
नीसरमी तसवीर निकाळै, अखबारां में अटकावै।
कठै गया सँसकार कामणी, शरम बिचारी शरमादी।
हिवड़े हाथ राख दे हेलो, आ कैड़ी है आजादी ।।4।।

बेटा बैचे भरी बजारां, टीके री कर टणकाई।
लाखां रुपया मोल लगावै, मिनख मांडी मंगताई।
दत्त दायजो पैला देखे, शरतां राख करै शादी।
हिवड़े हाथ राख दे हेलो, आ कैड़ी है आजादी।।5।।

कुदरत रो वरदान कुमाणस, पेट मांहने परखावै।
कन्या भ्रूण देख ने कूकै, पूतों नै ई पणपावै।
वंश बेलड़ी किंयां वधेला, सगपण कठै कठै शादी।
हिवड़े हाथ राख दे हेलो, आ कैड़ी है आजादी।।6।।

भोळी जनता नै भरमाये, जीतै संसद में जावै।
लातां घूंसां करै लड़ाई, टेबल कुरसे टकरावै।
बेमतळब रा बड़का बोले, सदन गरीमा शरमादी।
हिवड़े हाथ राख दे हेलो, आ कैड़ी है आजादी।।7।।

कानूनां रा नैम कायदा, पाळो देश धरम प्रीतां।
ऊजळ मरजादां अपणाओ, राखो सतवादी रीतां।
'दीप' भणे निज देश वासियां, असली समझो आजादी।
हिवड़े हाथ राख दे हेलो, आ कैड़ी है आजादी।।8।।
</poem>
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