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आह वो मंजिले-मुराद / फ़िराक़ गोरखपुरी
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16:18, 25 अक्टूबर 2020
आज कुछ इस तरह खुला,राज़े-सुकूने-दाइमी.
इश्क़ को भी खुशी नहीं,हुस्न भी शादमाँ नहीं.
</poem>
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