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है तो है (ग़ज़ल) / दीप्ति मिश्र

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कब कहा मैनें कि वो मिल जाये मुझको, मै उसे
गैर गै़र न हो जाये वो बस इतनी हसरत है तो है
दोस्त बन कर दुष्मनों दुश्मनों-सा वो सताता है मुझे
फ़िर भी उस जालिम पे मरना अपनी फ़ितरत है तो है
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