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मैं आपके सामने लिए गा रहा हूँ
नरमी से वैसे ही, जैसे एक पिता अपने मृत बच्चे से बोलता है
कठोरता से वैसे ही, जैसे बेड़ी-हथकड़ी में कोई आदमी
सूरज की रोशनी में
एक करोड़ साठ लाख लोग ऐसे हैं
जिन्हें उनके चमकते दाँतों की वजह से चुना गया है
उनकी तेज़ आँखों और पैरों के कठोर पुट्ठों की वजह से
और उनकी कलाइयों में दौड़ते गर्म-जवान ख़ून के लिए ।
मैं लाइनों में खड़े उन लोगों की उनींदी आँखों की
सरसराहट और हलचल सुनता हूँ
अन्धेरे में घिरी घिरे एक करोड़ साठ लाख लोग सो रहे हैं
और उनमें से कुछ हमेशा सोते रहते हैं ।
दुनिया को दुख की चपेट में ले लेंगे
खाएँगे, पीएँगे, मेहनत करेंगे ...
हत्यारों की लन्तहीन अन्तहीन नौकरी करेंगे
एक करोड़ साठ लाख लोग ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''