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व्यामोह जीवन के लिए / शंकरलाल द्विवेदी
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13:23, 24 नवम्बर 2020
यह तन सनातन ही नहीं, यह मन 'जनार्दन' भी नहीं।
फिर क्यों सुमन विकसित हुए, सुख-जल-निमज्जन के लिए।।
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२७
जुलाई,
1964
१९६४
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