Changes

यह तन सनातन ही नहीं, यह मन 'जनार्दन' भी नहीं।
फिर क्यों सुमन विकसित हुए, सुख-जल-निमज्जन के लिए।।
-27 २७ जुलाई, 1964१९६४
</poem>
124
edits