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<poem>
उतर चुका जिन की आँखों से लाज-शर्म का पानी।
उन ग़द्दारों ने माँटी की क़ीमत कब-कब जानी।।
अच्छा हो यदि और अधिक वे स्वाँग नहीं भर पाएँ,
जागो भारतवासी! उन की मेंटो नाम-निशानी।।
</poem>
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