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किताबें झाँकती हैं बंद आलमारी के शीशों से / गुलज़ार
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09:28, 10 दिसम्बर 2020
उनका क्या होगा
वो शायद अब नही होंगे!!
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'''[[चिहाउँछन् किताबहरू / गुलजार / सुमन पोखरेल|यहाँ क्लिक गरेर यस कविताको नेपाली अनुवाद पढ्न सकिन्छ ।]]'''
</poem>
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