|रचनाकार=रमेश पाण्डेय
}}
'''द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो यानि विलुप्त होती हुई गौरैया के बारे तालाब में कुछ नोट्स'''बची है शैवाल की(’द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो’ प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी डा. सालिम अली हरी खुरदरी कालीन महुआ के पेड़ों की आत्मकथा का शीर्षक हरी छाँव मकई के हरे खेत धान की हरी जवानी बचा हैअभी भी अपनों के बीच अपनों की ख़बर का चटख हरापन