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23:30, 17 दिसम्बर 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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<poem>
थक जाओगे गिन गिन के सर इतने हैं
लोग तुम्हारे क़द से बढ़ कर इतने हैं
अश्कों ने भी साथ हमारा छोड़ दिया
ज़ख्म हमारे दिल के अंदर इतने हैं
फ़ुरसत के लम्हात मयस्सर हों कैसे
कमरे में यादों के मंज़र इतने हैं
जाने कितनी नस्लें ठोकर खाएंगी
हम लोगों की राह में पत्थर इतने हैं
हमने ख़ुद ही सच्चाई तस्लीम न की
आईने तो घर के अंदर इतने हैं
जाने कितने चहरे पीले पड़ जाएं
राज़ हमारे दिल के अंदर इतने हैं
</poem>