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23:54, 17 दिसम्बर 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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इश्क़ मोहब्बत का अफ़साना रोज़ नया
दश्त में आता है दीवाना रोज़ नया
रोज़ पुराना दोस्त कोई मिल जाता है
हो जाता है ज़ख्म पुराना , रोज़ नया
यकजहती पर हमला करने वालों को
मिल जाता है कोई निशाना रोज़ नया
रोज़ समझना पड़ता है इस दुनिया को
दिखलाता है रंग ज़माना , रोज़ नया
रोज़ मैं अपने दिल को समझा लेता हूँ
मिल जाता है एक बहाना रोज़ नया
</poem>