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02:27, 20 दिसम्बर 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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<poem>
इतना अच्छा हूं अदाकार छुपा देता हूं
ग़म हज़ारों पसे दीवार छुपा देता हूं
मेरी बेचेनियां मुझ से नहीं देखीं जातीं
ख़ुद को ले जाके कहीं यार छुपा देता हूं
आज अच्छा है सवेरे से मेरा मूड बहुत
ऐसा करता हूँ कि अख़बार छुपा देता हूं
आते जाते हूए पड़ती है नज़र लोगों की
आ तुझे मैं दिल ए बीमार छुपा देता हूं
सब मेरे दोस्त तुझे दोस्त समझते हैं मेरा
जो मुझे तूने दिए ख़ार छुपा देता हूं
तुझको सच्चाई का अंजाम नहीं है मालूम
मैं तुझे मेरे क़लम कार छुपा देता हूं
</poem>