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07:19, 23 दिसम्बर 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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<poem>
दिल है टूटा कि आईना टूटा
आई आवाज़ छन से क्या टूटा
मैं कई मरतबा जुड़ा टूटा
न मैं हारा न हौसला टूटा
अपने दिल का गुमान होता है
जाम आगे से ये हटा टूटा
जो बहुत ख़ुश था टूटने से मेरे
आज वो भी मुझे मिला टूटा
काम आते हैं दुख में अपने लोग
आज ये भी मुग़ालता टूटा
मेरी हिम्मत कभी नहीं टूटी
सेंकड़ों बार घोंसला टूटा
ख़ुश मिज़ाजी पहन के आया है
तू भी अन्दर से है बता टूटा
</poem>