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जब पपीहे ने पुकारा / अज्ञेय

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जब पपीहे ने पुकारा- - मुझे दीखा-- 
दो पँखुरियाँ झरीं गुलाब की, तकती पियासी
मुकुर मे देखा गया हो दृश्य पानीदार आँखों के।
हँस दिया मन दर्द से--
’ओ मूढ! तूने अब तलक कुछ नहीं सीखा।’
जब पपीहे ने पुकारा- मुझे दीखा।
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