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एक ही छत / सुरंगमा यादव

11 bytes added, 19:27, 18 जनवरी 2021
[[Category:हाइकु]]
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5667कुहू के बोलसाँसों की पूँजीदादुर क्या समझेंबन्द न कर सकीइनका मोल।कोई तिजोरी।5768झील में चाँदबजती रहीउमस भरी रातसमय सरगमनहाने आया।अबाध क्रम।5869माटी है एकशब्द दो-चारएक ही कुम्भकारप्रकट कर देतेनाना आकार।भाव-विचार ।5970एक ही ज्योतिभीड़ है बड़ीहर घट भीतरमानवता की कमीकैसा अंतर !फिर भी पड़ी ।6071कहे प्रकृतिसत्य अटल‘स्व’ और ‘पर’ परमिलता कर्मफलहो समदृष्टि।आज या कल।6172मेघ कहारपाषाण जैसादूर देश से लायामानव मन हुआवर्षा बहार।आँसू न दया।6273नित नवीनश्रमिक भाग्यप्रकृति श्रम की सुषमापूँजी हाथनहीं उपमा।बारहों मास।6374आँचल हराउजड़े बागढूँढ़ती वसुंधराप्रदूषित नदियाँकहीं खो गया।मानव जाग।6475थक के सोयाकरे उजाड़दिवस शिशु समअहंकार की बाढ़साँझ होते ही रिश्तों का गाँव 6576मौन हो गयेवर्षा की झड़ीये विहग वाचालमजदूर के घरनिशीथ काल।ठण्डी सिगड़ी।6677
'''एक ही छत'''
कमरों की तरह
बँटे हैं मन
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