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जीवन-दान / अज्ञेय

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मुक्त बन्दी के प्राण!पैरें की गति शृंखल बाधित, काया कारा-कलुषाच्छादितपर किस विकल प्रेरणा-स्पन्दित उद्धत उस का गान!अंग-अंग उस का क्षत-विह्वल हृदय हताशाओं से घायल,
पैरें की गति शृंखल बाधित, काया कारा-कलुषाच्छादितपर किस विकल प्रेरणा-स्पन्दित उद्धत उस का गान ! मुक्त बन्दी के प्राण ! अंग-अंग उस का क्षत-विह्वल हृदय हताशाओं से घायल,किन्तु असह्य रणातुर उस की उसकी आत्मा का आह्वान! मुक्त बन्दी के प्राण ! उस की भूख-प्यास भी नियमित उस की अन्तिम सम्पत्ति परिहृतलज्जित पर बलिदान देख कर देखकर उस का जीवन-दान! मुक्त बन्दी के प्राणप्राणव !
'''डलहौजी, 1934'''
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