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धरती सोई थी
अम्बर गरजा
 
सुन कोलाहल
सहमी गलियां
शाखों में जा
दुबकी कलियां
 
बिजली ने उसको
डांटा बरजा
 
राजा गूंगा
बहरी रानी
कौन सुने
पीर-कहानी
 
सहमी सी गुम-सुम
बैठी परजा[प्रजा]
 
घीसू पागल
सेठ-सयाना
दोनो का है
बैर पुराना
 
कौन भरेगा
 
</poem>
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