Changes

कोई रक्तपलाश / शांति सुमन

10 bytes added, 11:48, 25 फ़रवरी 2021
अबके इस होली में कोई रक्तपलाश खिले
अनुबंधों अनुबन्धों की याद दिलायेदिलाए, पीत कनेर हिले
घाट नहाती लड़की जैसे
हुई अनमनी छाँहों वाली
गुमसुम लाल जवा
 
राजमहल कैसे बन जाते कैसे बने किले
पेड़ों की मुंडेर मुण्डेर पर चिड़ियों के हैं पंख सिले 
अक्षर-अक्षर छींट गया है
कोई सुबह उदासी
घूँट-घूँट पानी से तर
कर लेता रोटी बासी
 
चिन्ता तो होती है, पर किससे वह करे गिले
ईंचइंच-ईंच इंच बिक गया तपेसर होली कहाँ जले 
इस मौसम में फिर कोई
जादू ऐसा जनमे
फागुन-फागुन हो जाए दिन
परवत पीर कमे
मजबूरी है वरना कोई कैसे नहीं मिले
रंग-रंग के मेले, मन के नयम नहीं बदले
मजबूरी है वरना कोई कैसे नहीं मिले
रंग-रंग के मेले, मन के नियम नहीं बदले
</poem>
(संग्रह - भीतर भीतर आग । २५ फरवरी, १९९७)
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits