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कल्पना जिनकी यत्नहीन रही / जहीर कुरैशी
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17:40, 21 अप्रैल 2021
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
कल्पना जिनकी यत्नहीन रही
उनके पैरों तले ज़मीन रही
आदमी हर जगह पुराना था
ज़िन्दगी हर जगह नवीन रही.
</poem>
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