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|रचनाकार=अनामिका सिंह 'अना'
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<poem>
रामराज की जय हो, जय हो,
आग लगा दी पानी में ।

मन्दिर-मस्जिद में बैठा, उस
बुत के पढ़े कसीदे,
अखिल विश्व की सत्ता,
ने ही मूँद लिए हैं दीदे ।

फिर कोई जोखू बन आया
असलम दुखद कहानी में ।

ठकुरसुहाती करें चौधरी
डाल बुद्धि पर ताला,
लगा विवेकी चिन्तन में है
जातिवाद का जाला ।

घायल बचपन हुआ बिलोते
कट्टर धर्म मथानी में ।

अनाचार की विषबेलों ने
ज़हर हवा में घोला,
पाखण्डी चेले करते हैं
रोज़ - रोज़ ही रोला ।

न्याय-तुला भी नहीं उड़ेले
पानी चढ़ी जवानी में ।
</poem>
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