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|रचनाकार=अनामिका सिंह 'अना'
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<poem>
इसको रोए उसको रोए
बोल भला किस-किस को रोए
एक क़लम पर सौ खंजर हैं ।

सच के सुआ बेधती कीलें,
घात लगाए वहशी चीलें ।
धन कुबेर के कासे ख़ाली
मसले कलियों को ख़ुद माली ।

गुलशन सारा धुआँ-धुआँ है
बदहवास सारे मंज़र हैं ।

रेहन पर हैं सत्ताधारी,
कुटिल नीतियाँ हैं दोधारी,
भाषण लच्छेदार सुनाएँ,
हर अवसर पर विष टपकाएँ,

विध्वंसों की भू उर्वर है
सद्भावी चिन्तन बंजर हैं ।

लोकतंत्र में लोक रुआँसा,
खल वजीर ने फेंका पाँसा,
लिखी दमन की चण्ट कहानी,
सकते में है चूनर धानी,

धन्नामल हैं रंगमहल में
सड़कों पर अंजर-पंजर हैं ।
</poem>
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