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<poem>
ज़हर पी कर दवा से डरते हैं
रोज़ मर कर क़ज़ा से डरते हैं

दुश्मनों की जफ़ा का डर जाइज़
दोस्तों की वफ़ा से डरते हैं

यूँ परेशां सितम से अपनों के
ग़ैर की अब रज़ा से डरते हैं

क़िस्सा-ए-क़ैस सुन ये हाल हुआ
उन्स की इब्तिदा से डरते हैं

ख़ौफ़ हम को नहीं ख़ुदा का पर
ज़ाहिदों की सदा से डरते हैं

हुस्न की आरज़ू नहीं हम को
उनकी हर इक अदा से डरते हैं

माना बीमार इश्क़ में मयकश
दर्द से कम शिफ़ा से डरते हैं
</poem>
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