1,139 bytes added,
11:56, 2 जुलाई 2021 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=उदय कामत
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatNazm}}
<poem>
पुतलों का मुल्क है पुतलों का मान है
बनना माज़ूर सब ने लिया ठान है
आँखें बे-नूर ख़ामोशी ही शान है
दिल है पत्थर का और जिस्म बे-जान है
मोम मिट्टी हजर सब का गुन-गान है
रंग सबके जुदा एक पहचान है
बुत का ही फ़ैसला बुत का फ़रमान है
बुत के फ़िरदौस में बुत ही रिज़वान है
बुत ही दरबान है बुत ही ख़ाक़ान है
बुत ही नादान है बुत ही इरफ़ान है
बुत ही शैतान है बुत ही यज़दान है
शोर चारों तरफ़ बुत ही इंसान है
</poem>